रविवार, 4 सितंबर 2011

नया जमाना

दादी जी हाँ दादी जी
बात सुनो तुम मेरी भी

कभी चाँद पर रहती थी
चरखा काता करती थी
कहाँ गयी बूढी दादी
तुम मुझको बतलाओ जी

बिटिया अब नया जमाना
नया भेद सबने जाना
छोड़ो अब वो ज्ञान पुराना
नया ज्ञान अपनाओ जी

नहीं हवा नाही पानी
कोशिश अब ये इंसानी
कभी बसेगी कॉलोनी
घर अपना बनवाओ जी

कोशिश तुम ये ही करना
तभी चाँद पर पग धरना
सीखो प्यार से जब रहना
सुन्दर जहां बनाओ जी

11 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर सन्देश देती हुई प्यारी रचना ..

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  2. खूबसूरत बहुत प्यारी प्रस्तुति...

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  3. अरे वाह!
    बच्चों के लिए इतनी सुन्दर दादी की थ रचना में!
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है यह तो!

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