बुधवार, 29 जून 2011
छुपम-छुपाई खेलें तारे
शनिवार, 18 जून 2011
धुनिया और गीदड
ले हाथों में धुनकी घोंटा
और संग था डोरी लोटा
वह था धुनिया अपनी धुन में
धुनक धुनक करता था वन में
डर को अपने दूर भगाता
मन ही मन खुद को समझाता
खेल नहीं कोई दंगल है
मेरे भाई यह जंगल है
दूर बहुत नहीं अगला गांव
चल बढ़ चलाचल मेरे पांव
सांझ हुई तू पार करा दे
अब के भगवन मुझे बचा ले
तभी सामने गीदड़ आया
रंग में था जो अभी नहाया
उसने जब धुनिया को देखा
था सामने जनम का लेखा
यह तो मुझको ना छोडेगा
गर भागूं पीछे दौडेगा
हालत धुनिया की भी ऐसी
बिल्ली देख कबूतर जैसी
एक एक पल ऐसे बीता
गीदड़ उसको दीखा चीता
गले दोनों के अटके प्राण
आया गीदड़ को फिर ध्यान
समय काम आई चतुराई
चापलूस ने जान बचाई
हर एक वचन को मन में तोला
मीठे सुर में गीदड़ बोला
लेकर हाथ धनुष और बाण
कहाँ की सैर करे सुलतान
देव भाग्य ने पलटा खाया
धुनिया मन ही मन मुस्काया
बोली मीठी पड़ी जब कान
आई रे अब जान में जान
सुन जंगल में मंगल सुराज
चले आये हम भी वनराज
इक दूजे को देकर आदर
भागे सरपट जान बचाकर
टिप्पणी
१ . लोककथा पर आधारित
२ .रुई धुनने का उपकरण धनुष जैसा होता था