गुनगुन करते
गीत सुनाते
बिना बात सिर
पर चढ़ जाते
गगन तले व नदी
किनारे
रहें पार्क में
साथ हमारे
सुई लगाता बनकर
डॉक्टर
बीमारी दे जाता
अक्सर
साढ़े तीन हैं
नाम में अक्षर
जी हाँ दादू वो
हैं मच्छर
दादी को मैनें
बतलाया
मजबूत इक किला
बनवाया
द्वार नहीं पर
कई झरोखे
लेकिन मच्छर इक
न झाँके
सुन लो मच्छर
तुम थे ज्ञानी
हम ले आये
मच्छरदानी
अब कितना भी
शोर मचाओ
दूर खेलो पास ना
आओ